सिकलिग बिमारी क्या है और क्या है इसके लक्षण


 सिकलिंग से बचाव ही इसका इलाज है


 कैसे पहचानेंगे इसे ? 


यदि  बच्चों  के  हाथों -पैरों  में  सूजन के साथ दर्द हो, बार-बार सर्दी, खांसी, न्यूमोनिया होता हो, अंगों में पीड़ा हो, पेट में दर्द होता हो, कमजोरी लगती हो, और दवाइयां खाने पर भी लाभ न हो रहा हो रहा हो  तो सिकलिंग का संदेह कर सकते हैं. पेट में स्पर्श करने पर तिल्ली बड़ी हुई मिल सकती है . ऐसा होने पर रक्त का सिकलिंग टेस्ट कराना चाहिये . बेहतर हो कि हीमोग्लोबिन की इलेक्ट्रोफोरेटिक जांच कराई जाय .

सिकलिंग से प्रभावित होने वाले प्रमुख अंग :-अस्थियाँ, यकृत, तिल्ली, फेफड़े, मस्तिष्क और आँख.

कब प्रकट होते हैं लक्षण? 

संक्रमण होने से, ऑक्सीजन की कमी होने से, ऊंचे स्थानों में जाने से, व्यायाम अधिक करने से, शरीर में जल की कमी होने से, तेज सर्दी से , वाहनों के धुएं से, अम्लीय पदार्थों के सेवन से, गर्भावस्था में एवं प्रसव के बाद सिकलिंग (ट्रेट ) के रोगियों में रोग के लक्षण तीव्रता से प्रकट होने की संभावना रहती है.

कब कराएं जांच ?

सिकलिंग के पीड़ितों को चाहिए कि वे अपने बच्चों में नौ माह की उम्र के पहले ही हीमोग्लोबिन की इलेक्ट्रो फोरेटिक जांच करवा लें यह विश्वसनीय जांच है एवं एक बार करवा लेने के बाद बार-बार करवाने की आवश्यकता नहीं पड़ती. इस जांच में थैलेसीमिया का भी पता चल जाता है  ध्यान रहे रक्त का सामान्य सिकलिंग टेस्ट फाल्स निगेटिव या फाल्स पोसिटिव हो सकता है. 

सिकलिंग से बचने के उपाय :- 

१- यह एक आनुवंशिक रोग है अतः विवाह के पूर्व वर-वधु के रक्त की सिकलिंग जाच अवश्य कराएं . यदि दोनों में सिकलिंग हो तो विवाह मत कराएं. अगली पीढ़ियों में इसे रोकने का यही एक मात्र उपाय है. २- गर्भावस्था के समय संक्रमण से बचाव, कम से कम दवाओं का प्रयोग, एक्स-रे आदि परीक्षणों से यथासंभव बचाव करें तथा पौष्टिक आहार देवें, गर्भिणी का सुरक्षित प्रसव भी एक आवश्यक कदम है. 

 उपचार की व्यवस्था :-

१- सिगरेट, शराब आदि नशों से परहेज़ करें २- अधिक परिश्रम से बचें,३ - संक्रमण से बचाव करें, ४ पौष्टिक एवं सुपाच्य आहार का सेवन करें, ५- लक्षणों की शान्ति हेतु धैर्य पूर्वक आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करें. 

सिकलिंग में लाभदायक है :- 

ख़ूब पानी पीना, मकोय, पुनर्नवा, चौलाई, डोडा शाक, मूंग दाल, सहजन, सिंघाड़ा, कमल नाल (ढेंस), कमल का बीज, दूध, मधु, रसीले तथा मीठे फल और खुले हवादार स्थानों में रहना. 

सिकलिंग में हानिकारक है:- 

तले एवं अम्लीय पदार्थ , मांसाहार, फावा-बीन, कोई भी नशा, किसी भी प्रकार का संक्रमण, वाहनों का धुंआ, ऊंचे  स्थानों पर रहना या पहाड़ों पर जाना, रेडियेशन, डिहाइड्रेशन,  एसिडोसिस एवं बिना डाक्टर की सलाह के कोई भी दवा सेवन करना.

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