डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों को सबसे ज्यादा किड़नी ख़राब होने का डर रहता है ऐसे में आप किस तरह से अपने किड़नी को बचा सकते हैं साथ ही लेबल क्या होता है जिससे की किडनी खराव हो सकती है जरूर पढ़ें यह लेख।

विश्वस्तर पर कैंसर और हृदय संबंधी रोगों के बाद मौत का कारण बनने वाली तीसरी बड़ी बीमारी किडनी की है। भारत में ही हर वर्ष दो लाख से अधिक किडनी फेल होने के मामले सामने आते हैं। क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के हर दस में से सात मरीजों में किडनी के रोगों का कारण मधुमेह, हाइपरटेंशन और मोटापा पाए गए हैं। पर अच्छी बात यह है कि कुछ दिशानिर्देशों का पालन करके समस्या को गंभीर बनने से रोका जा सकता है। 
क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) को क्रॉनिक रीनल डिजीज भी कहते हैं। इसके तहत गुर्दे के काम करने की क्षमता में धीरे-धीरे कमी आती चली जाती है। यही कारण है कि बड़े स्तर पर इससे प्रभावित लोगों में इस रोग की शुरुआत के कोई घातक लक्षण दिखाई नहीं देते। पर उससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि पीड़ित लोगों में इस रोग के प्रति जानकारी का अभाव है और वे नियमित जांच व जीवनशैली में आवश्यक सुधार करने में लापरवाही बरतते हैं। बढ़ती उम्र, मोटापा, हाइपरटेंशन व मधुमेह का बुरा असर किडनी की कार्य प्रणाली पर पड़ता है।
एंड-स्टेज रीनल डिजीज (ईएसआरडी) वह स्थिति है, जब हल मात्र किडनी प्रत्यारोपण और डायलिसिस का रह जाता है। भारत में ईएसआरडी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। करीब डेढ़ लाख मामले हर साल सामने आ रहे हैं। ऐसे में आम जागरुकता व जांच कार्यक्रमों पर ध्यान देना तथा रोगियों व चिकित्सकों दोनों को इस संबंध में शिक्षित करना बेहद जरूरी है।
वर्तमान में सभी प्रयोगशालाओं में जांच के समय ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट (जीएफआर ) की जानकारी दी जाती है, जिससे चिकित्सकों को मरीज के गुर्दे की स्थिति के बारे में अधिक सूचनात्मक जानकारी मिल जाती है। ऐसे मरीज, जो मधुमेह और हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं, उन्हें भी अपनी किडनी के बारे में बेहतर जानकारी मिलती रहती है। आमतौर पर क्रॉनिक किडनी डिजीज की पहचान ब्लड टेस्ट में क्रिएटिनाइन की पहचान से होती है। इसकी अधिकता कम जीएफआर को बताती है, जो किडनी के अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर करने की कम क्षमता को दर्शाता है। ‘गुर्दे संबंधी रोगों में लक्षणों की पहचान काफी देर से होती है। यही कारण है कि पता चलने तक स्थिति गंभीर बन चुकी होती है।’
पहले बड़े स्तर पर चलाए जाने वाले स्वास्थ्य कार्यक्रम मुख्य रूप से हाइपरटेंशन, मधुमेह व हृदयरोग पर केंद्रित होते थे, पर पिछले कुछ समय से गुर्दे संबंधी रोगों के बढ़ते मामले, जानकारी के अभाव में ईएसआरडी की स्थिति में मरीजों के पहुंचने और डायलिसिस व गुर्दा प्रत्यारोपण के महंगे उपचार ने इस संबंध में बड़े स्तर पर जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाने की जरूरत उत्पन्न कर दी है।
👉 ‘जिन परिवारों में मधुमेह, हाइपरटेंशन या गुर्दे के रोगों का इतिहास रहा है, वहां किडनी क्रॉनिक डिजीज के मामले अधिक होते हैं। ऐसे में उनके लिए नियमित स्क्रीनिंग करानी जरूरी है। जांच की प्रक्रिया सरल है और शुरू में पहचान होने से आप समस्या को गंभीर बनने से रोक सकते हैं। प्रभावित किडनी की गुणवत्ता को लंबे समय तक बरकरार रख सकते हैं।  टेस्ट प्रक्रिया में चंद मिनटों का ही समय लगता है।’

यदि रोग की पहचान शीघ्र हो जाती है तो जीवनशैली में बदलाव से और चुनिंदा दवाओं से गुर्दे के क्रियाकलापों को लंबे समय तक ठीक रखा जा सकता है। डायटीशियन के अनुसार, ‘गुर्दे के रोगों में खान-पान का काफी महत्व होता है। समय पर पहचान होने पर स्थिति को गंभीर बनने से रोका जा सकता है। इस प्रक्रिया में मरीज को सबसे पहले सोडियम (नमक), पोटैशियम, फलों का रस, केल्शियम व फॉस्फोरस के सेवन की मात्र कम कर देनी चाहिए। साथ ही प्रोसेस्ड फूड का सेवन कम करें।’
अंतिम स्थिति में पहुंचने पर मरीज डायलिसिस या प्रत्यारोपण पर निर्भर रहता है। रोगी घर पर या किसी डायलिसिस केन्द्र या अस्पताल में डायलिसिस करवा सकते हैं। जब गुर्दे का रोग एंड-स्टेज रीनल डिजीज की स्थिति में पहुंच जाता है तो प्रत्यारोपण ही सही विकल्प माना जाता है। प्रत्यारोपण संभव नहीं होने पर डायलिसिस का विकल्प अपनाया जाता है। डायलिसिस के विभिन्न विकल्प इस तरह हैं:

इन-सेंटर या हॉस्पिटल में हीमोडायलिसिस: इसके तहत एक मशीन और डायलाइजर यानी  कृत्रिम गुर्दे द्वारा शरीर में से व्यर्थ पदार्थ व द्रव बाहर निकाले जाते हैं। पहले शरीर में से रक्त निकाला जाता है और फिर इसे साफ किया जाता है। डायलाइजर की मदद से इसे फिर से शरीर में चढ़ाया जाता है। सामान्य एचडी पूरा करने में चार घंटे का समय लगता है।
घर में डायलिसिस: पेरिटोनियल डायलिसिस (पीडी) के रूप में आप घर में भी डायलिसिस कर सकते हैं। पीडी पेरिटोनियल मेंबरेन या एब्डॉमिनल लाइनिंग की मदद से नेचुरल फिल्टर की तरह काम करता है और रक्त से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर कर देता है। पीडी सामान्यत: दिन में 24 घंटे लगातार डायलिसिस उपलब्ध कराता है। पीडी उपचार दो मुख्य प्रकार का होता है, एक ऑटोमेटेड पेरिटोनियल डायलिसिस (एपीडी) मशीन के जरिए होता है और दूसरे में मरीज स्वयं इसे कर लेता है। एपीडी रात में सोते हुए रोगी के लिए रक्तशोधन का कार्य करता है। इससे मरीज के दिनभर की सामान्य दिनचर्या पर भी कोई असर नहीं पड़ता। रोगी परिवार व सामाजिक गतिविधियों के लिए अधिक समय निकाल सकता है।
👉‘मुख्य रूप से यह रोगी पर निर्भर करता है कि वह पेरिटोनियल या हीमोडायलिसिस में से कौन-सा विकल्प चुनना चाहता है। दोनों के अपने-अपने लाभ हैं। कुछ रोगियों के लिए पेरिटोनियल डायलिसिस फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि आप इसे घर पर भी कर सकते हैं और आपको अस्पताल जाने की जरूरत नहीं होती। पर गुर्दे के रोगों से पीड़ित लोगों और उनके परिवार के सदस्यों को कोई भी फैसला करने से पूर्व इस संबंध में अपनी जीवनशैली को बताते हुए चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।’

👉किडनी को स्वस्थ रखने के मंत्र
सक्रिय रहें। हर रोज आधे घंटे दौड़ें, पैदल चलें, स्वीमिंग करें या साइक्लिंग करें।
ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखें। यदि मधुमेह की पहचान शुरुआती स्तर पर हो जाए तो किडनी पर पड़ने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
सेहतमंद रहें और अपने वजन को नियंत्रित रखें। दिनभर में 5 से 6 ग्राम नमक का सेवन काफी है।
ब्लड प्रेशर की जांच कराते रहें। आदर्श स्तर 120/80 होना चाहिए। 140/90 होने पर डॉक्टर को दिखाएं।
धूम्रपान न करें। इससे किडनी तक रक्त प्रवाह धीमा हो जाता है।
लिक्विड अधिक मात्र में लें। ऐसे मरीज जिन्हें किडनी में पथरी की समस्या रहती है, उन्हें दिनभर में दो से तीन लिटर पानी अवश्य पीना चाहिए।
काउंटर पर सीधे बिकने वाली दवाएं या दर्द निवारक दवाएं न लें। किसी भी प्रकार का नशा सख्त मना है। 
मधुमेह, मोटापा, ब्लड प्रेशर संबंधी समस्याएं या ऐसे लोग, जिनके घर में ऐसी कोई समस्या है, उन्हें नियमित रूप से किडनी जांच कराते रहना चाहिए।

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