डेंगू के लक्षण कैसे होते हैं और अब डेगु में प्लेटलेट्स की जरूरत होती है आपके लिए जानना जरूरी है । आइये बताते हैं ।

जैसे ही आपको समय मिले आप जरूर इस लेख को पढ़ें क्योंकि जिस तरह से आज डेंगू बिहार और झारखंड में तबाही मचा रही है ऐसे परिस्थिति में आप थोड़ा सचेत रहें ।  डेंगू और प्लेटलेट : क्या सत्य क्या मिथक
आज हमारे शहर में डेंगू फैलना शुरू हुआ नहीं कि अस्पतालों में बेड नहीं मिलते या लोग प्लेटलेट चढ़ाने के पीछे आतुर होने लगते हैं। डेंगू में फर्स्ट लाइन ऑफ ट्रीटमेंट प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन नहीं है यह अधिकतर लोग नहीं समझते। अंतरराष्ट्रीय दिशा निर्देशों के अनुसार जब तक प्लेटलेट काउंट दस हज़ार के नीचे नहीं गिर जाता या फिर स्वतः/सक्रिय रक्तस्राव न हो तब तक प्लेटलेट चढ़ाने की आवश्यकता ही नहीं। अपितु अनावश्यक प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन करने से मरीज अधिक अस्वस्थ हो सकता है।
डेंगू से पीड़ित रोगियों में मृत्यु का प्राथमिक कारण केपिलरी (केशिका) रिसाव है, जो इंट्रावास्कुलर कंपार्टमेंट यानी धमनियों में रक्त की कमी का कारण बनता है, जिससे मल्टी ऑर्गन फेलियर होता है। धमनियों से बाहर टिश्यू (एक्स्ट्रावास्कुलर कंपार्टमेंट) तक प्लाज्मा (रक्त का द्रव) रिसाव होते ही प्रति घंटे शरीर के वजन के प्रति किलोग्राम 20 मिलीलीटर की दर से फ़फ्लूइड्स (सलाइन) चढ़ाना चाहिए। इसे तब तक जारी रखना चाहिए जब तक कि ऊपरी और निचले रक्तचाप के बीच का अंतर 40 से अधिक न हो जाए, या रोगी पर्याप्त मात्रा में मूत्र त्याग न कर दे। मरीज के इलाज के लिए बस इतना ही जरूरी है। घर में डेंगू के उपचार में खूब सारा पानी और तरल पदार्थ का सेवन करते रहना चाहिए।
डेंगू बुखार एक दर्दनाक वायरल बुख़ार है जो कि संक्रमित मादा एडीस एजिप्टी मच्छर के काटने से फ़ैलता है। यह चार प्रकार के डेंगू वायरस में से किसी एक के कारण होता है।डेंगू के सामान्य लक्षणों में तेज बुखार, नाक बहना, त्वचा पर हल्के लाल चकत्ते, खांसी होना माथे और आंखों के पीछे एवं जोड़ों में दर्द शामिल हैं। हालाँकि, कुछ लोगों को त्वचा पर लाल और सफेद धब्बेदार चकत्ते हो सकते हैं, जिसके बाद भूख में कमी, मिचली, उल्टी आदि हो सकती है। डेंगू से पीड़ित मरीजों को चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए, आराम करना चाहिए और खूब सारे तरल पदार्थ पीने चाहिए। बुखार कम करने और जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए पैरासिटामोल लिया जा सकता है। हालाँकि, एस्पिरिन, आईबुप्रोफेन, निमेसुलाइ इत्यादि नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि वे रक्तस्राव के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
डेंगू एनएस1 एंटीजन सर्वोत्तम टेस्ट है जो फ़ॉल्स पॉजिटिव नहीं हो सकता। आदर्श रूप से एक से सात दिनों तक पॉजिटिव रहता है। यदि पहले दिन नेगेटिव है, तो अगले दिन इसे दोहराएं। हमेशा एलाइज़ा आधारित एनएस1 परीक्षण के लिए पूछें क्योंकि कार्ड परीक्षण भ्रामक हो सकते हैं। प्राथमिक डेंगू में आईजीजी सात दिन के अंत में पॉजिटिव हो जाता है, जबकि आईजीएम चार दिन के बाद पॉजिटिव हो जाता है। प्लेटलेट्स कम होने और बीमारी के तीसरे या चौथे दिन "बीमार" दिखने वाले मरीजों में, आईजीएम में बॉर्डरलाइन वृद्धि के साथ आईजीजी का बहुत उच्च लेवल सेकेंडरी (दोबारा) डेंगू का संकेत देता है। इन मरीजों में जटिलताओं की संभावना अधिक होती है।
डेंगू के मच्छर केवल दिन के वक़्त ही काटते हैं। डेंगू के 1% से भी कम मामलों में जटिलताओं का जोखिम होता है और, यदि जनता को चेतावनी के संकेतों की जानकारी हो, तो डेंगू से होने वाली सभी मौतों को टाला जा सकता है। बचाव के लिए मच्छरदानी का उपयोग करें। डेंगू का लार्वा जमे हुए साफ़ पानी में उपजता है अतः अपने घर के आसपास पानी जमा न होने दें या जमे हुए पानी के ऊपर कम से कम मिट्टी तेल डाल दें।
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